नवधा भक्ति का वर्णन श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम द्वारा किया गया है, जब उन्होंने शबरी को 9 प्रकार की भक्ति का उपदेश दिया था। यह प्रसंग उस समय का है जब भगवान राम, शबरी की भक्ति और प्रेम से प्रभावित होकर उसके कुटीर में आए थे। शबरी ने भगवान राम की सेवा की और उनके समक्ष अपनी प्रेमभावना प्रस्तुत की। तब भगवान राम ने उसे नवधा भक्ति का मार्ग बताया, जो कि एक भक्त के लिए ईश्वर के निकट पहुँचने का सर्वोत्तम मार्ग है। आइए जानते हैं इन नवधा भक्ति के नौ चरणों को और उनका महत्व।
नवधा भक्ति का श्लोक (श्रीरामचरितमानस)
नवधा भक्ति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरी रति मम कथा प्रसंगा॥
गुर पद पंकज सेवा तीसरी भगति अमाना। चौथी भगति मम गुन गण करइ कपट तजि गाना॥
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥
सातवाँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥
आठवाँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहीं देखइ परदोषा॥
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥
हिंदी अनुवाद: नवधा भक्ति का अर्थ
- प्रथम भक्ति यह है कि भक्त सच्चे संतों के संगति में रहे। संतों का संग हमें धर्म, भक्ति और सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
- दूसरी भक्ति यह है कि भक्त भगवान की कथाओं और लीलाओं में प्रेमपूर्वक रुचि रखे और उनका आनंद ले।
- तीसरी भक्ति है कि भक्त अपने गुरु के चरणों में सेवा और भक्ति करता रहे, उसे कभी अभिमान न हो।
- चौथी भक्ति यह है कि भक्त भगवान के गुणों का गान करे और कपट को त्याग दे।
- पंचम भक्ति यह है कि भक्त दृढ़ विश्वास के साथ भगवान का नाम जपे और मंत्र का जाप करे।
- छठवीं भक्ति यह है कि भक्त संयम, विनम्रता और विभिन्न कर्मों से दूर रहते हुए सज्जनों के धर्म में लीन हो।
- सातवीं भक्ति यह है कि भक्त समभाव से पूरे जगत को भगवान का स्वरूप माने और संतों को अपने से अधिक महत्व दे।
- आठवीं भक्ति यह है कि जो भी प्राप्त हो उससे संतुष्ट रहें और कभी भी दूसरों की निंदा न करें।
- नवमी भक्ति यह है कि सभी के प्रति सरल और छलरहित व्यवहार रखे और हृदय में केवल भगवान पर भरोसा रखे।
English Translation: नवधा भक्ति के 9 चरण
- The first devotion is to keep the company of true saints. Associating with holy people leads one towards the path of righteousness and devotion.
- The second devotion is to take joy and immerse oneself in listening to the divine stories and pastimes of the Lord.
- The third devotion is to serve the lotus feet of the Guru without any sense of pride or ego.
- The fourth devotion is to sing the praises of the Lord and completely abandon all deceit and hypocrisy.
- The fifth devotion is to chant the sacred mantra of the Lord with firm belief and unwavering faith.
- The sixth devotion is to practice restraint, humility, and remain detached from worldly actions, while being devoted to the duties of a righteous person.
- The seventh devotion is to view the entire world as filled with the presence of the Lord and to hold saints in higher regard than oneself.
- The eighth devotion is to be content with whatever one receives and never indulge in slandering others.
- The ninth devotion is to have simplicity in dealings with everyone, to be free of deceit, and to keep unwavering trust in the Lord with a heart filled with joy and not sadness.
नवधा भक्ति का महत्व
नवधा भक्ति हमें सिखाती है कि भक्ति का मार्ग केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन की समग्र सोच, व्यवहार और दृष्टिकोण को भी बदलता है। इसमें संतों का संग, कथा श्रवण, गुरु सेवा, गुण गान, मंत्र जाप, संयम, समभाव, संतोष, और सरलता का समावेश है। यह भक्ति का मार्ग हमें भगवान के निकट ले जाने का सर्वोत्तम साधन है और हमें एक सच्चे भक्त के गुणों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
नवधा भक्ति
नवधा भक्ति एक साधक के लिए मार्गदर्शक की तरह है जो उसे आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में ले जाता है। इसे अपनाकर कोई भी व्यक्ति जीवन में शांति, संतोष और ईश्वर के निकटता का अनुभव कर सकता है। शबरी की भक्ति और भगवान राम की कृपा का यह संवाद हर भक्त को अपने जीवन में नवधा भक्ति के सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
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