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bhagavad gita chapter 16 daivi sampad shlok

भगवद गीता” के १६वें अध्याय का “दैवी सम्पद” श्लोक एवं इसका हिंदी अर्थ

इस पोस्ट में हम भगवद गीता” के १६वें अध्याय का “दैवी सम्पद” श्लोक एवं इसका हिंदी अर्थ जानेंगे, योग गुरु स्वामी रामदेव जी का कहना है कि अगर हमें पूरा वेद का ज्ञान नहीं है तो कम से कम मुख्य संदर्भ याद होना चाहिए यानी कुछ मुख्य चौपाई या श्लोक हम सभी को याद होना ही चाहिए।

सभी धर्म के लोग अपना-अपना पवित्र ग्रंथ को याद रखते हैं जैसे मुस्लिम धर्म के लोग कुरान को याद रखते हैं ऐसे ही ईसाई धर्म के लोग बाइबल को याद रखते हैं ठीक ऐसे ही हिंदू धर्म के लोगों को भी गीता को याद करना चाहिए लेकिन अगर पूरा वेद का ज्ञान नहीं भी है तो भी कुछ मुख्य संदर्भ को याद कर ही लेना चाहिए।

इस पोस्ट में हम भागवत गीता के 16वें अध्याय का दैवी सम्पद श्लोक को पढ़ेंगे साथ ही इसका हिंदी एवं इंग्लिश अर्थ भी जानेंगे तो चलिए सबसे पहले भगवत गीता का एक परिचय देखते हैं।

भगवद गीता: एक परिचय

भगवद गीता, जिसे “गीता” के नाम से भी जाना जाता है, एक पवित्र ग्रंथ है जो महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है। यह एक संवाद है जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ था। जब अर्जुन कौरवों के साथ युद्ध करने से हिचकिचा रहे थे और मानसिक दुविधा में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, धर्म और योग के महान सिद्धांत समझाए। गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जिनमें से हर अध्याय एक अलग योग (मार्ग) का परिचय देता है, जैसे कि कर्म योग, भक्ति योग, और ज्ञान योग।

गीता के 16वें अध्याय को “दैवासुरसम्पद्विभाग योग” कहा जाता है, जिसमें दो प्रकार की प्रकृति का वर्णन किया गया है — दैवी सम्पद और आसुरी सम्पद। दैवी सम्पद का अर्थ है वो गुण जो हमें दिव्य और उच्च आदर्शों की ओर ले जाते हैं, जबकि आसुरी सम्पद वो गुण होते हैं जो हमें अधोगति की ओर ले जाते हैं।

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दैवी सम्पद श्लोक (भगवद गीता, अध्याय 16, श्लोक 1-3)

संस्कृत श्लोक:

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥ (१६-१)
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्। दया भूतेष्वलो लुप्त्वं मार्दवं हीरचापलम्॥ (१६-२)
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता। भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥ (१६-३)

हिंदी अर्थ:

  1. अभय, सत्त्व की शुद्धि, ज्ञान योग में स्थित रहना, दान, इंद्रियों का संयम, यज्ञ, स्वाध्याय (अध्ययन), तपस्या, और सरलता – ये सभी दैवी गुण हैं।
  2. अहिंसा, सत्य, क्रोध का त्याग, त्याग (संपत्ति का), शांति, अविवादिता, दयालुता, लोभ का अभाव, कोमलता, नम्रता, और अकपटता – ये भी दैवी सम्पद में आते हैं।
  3. तेज, क्षमा, धैर्य, शुद्धता, अद्रोह (किसी से द्वेष न करना), और अभिमान का अभाव – ये सभी दैवी सम्पद के गुण हैं। हे भारत! ये गुण दिव्य स्वभाव वाले व्यक्ति में पाए जाते हैं।

अंग्रेजी अर्थ:

  1. Fearlessness, purity of mind, established in knowledge and yoga, charity, self-control, sacrifice, study of scriptures, austerity, and straightforwardness – these are considered divine qualities.
  2. Non-violence, truthfulness, absence of anger, renunciation, calmness, non-criticism, compassion for all beings, absence of greed, gentleness, humility, and absence of fickleness – these are also part of divine attributes.
  3. Vigor, forgiveness, fortitude, cleanliness, absence of malice, and absence of pride – these all belong to the divine nature. O Bharata (Arjuna), these qualities are found in one who is born with a divine disposition.

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दैवी सम्पद निष्कर्ष

दैवी सम्पद का तात्पर्य उन गुणों से है जो एक व्यक्ति को आत्मोन्नति और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाते हैं। ये गुण न केवल आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं बल्कि हमारे सामाजिक जीवन को भी सुगम बनाते हैं। भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि इन गुणों को अपनाकर हम अपने जीवन को दिव्य और संतुलित बना सकते हैं।

इस प्रकार, हमें प्रयास करना चाहिए कि हम अपने जीवन में इन दैवी गुणों का पालन करें और अपने आचरण को उच्च आदर्शों के अनुरूप बनाएं।

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